पूर्वी सिंहभूम जिला के बहरागोड़ा प्रखंड अन्तर्गत छोटा पारुलिया पंचायत के छोटा तारुआ गांव में आज भी कई सारे मजदूर परिवारों को अबूआ आवास नसीब नहीं होने से पुआल के झोपड़ियों में तिरपाल टांगकर रहने को मजबूर है. उन परिवारों में से अम्बिका देहुरी, ममता देहुरी, कुनु देहुरी, पुष्पा देहुरी, सुजाता देहुरी, कबिता देहुरी, विद्युत देहुरी, बासंती देहुरी, राधारानी देहुरी, रिम्पा देहुरी, संध्या देहुरी, उमा देहुरी, मूली खामराई, नयनतारा खामराई, सावित्री खामराई, टुनटुनि खामराई, नमिता खामराई, आशा खामराई, अर्चना खामराई आदि ने बताया कि कई बार जनप्रतिनिधियों एवं अधिकारियों से मिलकर आवास योजना के लिए गुहार लगा चुके हैं लेकिन आज भी टूटे-फूटे झोपड़ियों में रहने को मजबूर हैं. बरसात के दिनों में तो स्थिति काफी भयावह हो जाता है. पहले इन गरीब परिवारों के पास मिट्टी का घर होता था जो धीरे-धीरे ध्वस्त हो गया है और पिछले दस-पंद्रह साल से गांव में झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं. इस दौरान झारखंड में कई सरकार आई और गई लेकिन इन परिवारों को आज तक सिर्फ आश्वासन ही मिलता रहा है. यह परिवार दर-दर भटक रहे हैं, कई बार शिकायत के बावजूद भी इन परिवारों को कोई भी आवास योजना की सुविधा नहीं मिल सका है. ग्रामीणों में तपन दे, देवव्रत दे, मिहिर दे, दीपक दे, अशोक दे, हरिहर दत्त इत्यादि ने बताया कि यह स्थिति बहुत ही दुखद है, क्योंकि वर्षों इन्तिज़ार करने के बाद भी इन असहाय गरीब परिवारों को सरकार की आवास योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाया है. वे अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं, उन्हें समुचित आजीविका और आवास की सख्त आवश्यकता है. अभी धूप के दिनों में भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ऊपर तिरपाल निचे पुआल की छावनी से काफी गर्मी झेलना पड़ता है तथा विषैले सांपों के डर से रात को चैन से नींद भी नहीं हो पाता है. ग्राम प्रधान बंकिम चंद्र डे का कहना है कि सर्वे अधिकारियों की ऐतिहासिक भूल के कारण उक्त सभी परिवार सामान्य वर्ग में सूचीबद्ध हैं, परन्तु वास्तविक आंकलन किया जाए तो इनका सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक अवस्था अत्यंत पिछड़ा है, दयनीय और शोचनीय है. वर्षों से आवास लाभार्थी सूची में नाम होने के बावजूद भी इन्हें आधिकारिक मंजूरी या स्वीकृति नहीं मिला है. कभी कहा जाता है प्रधानमंत्री आवास मिलेगा तो कभी कहा जाता है अबुआ आवास, पंचायत के कर्मचारी आते हैं और फोटो खिंच कर चले जाते हैं, पिछले दस वर्ष से इन गरीबों के साथ यही खेल चल रहा है. ये परिवार अब इतना तंग आ चुका है कि सरकार से इनका आशा भरोसा उठने लगा है और ये लोग भीख मांगकर मकान बनाने का सोचने लगा है. अतएव पुनः सभी जनप्रतिनिधियों एवं संबंधित अधिकारियों से अनुरोध है कि उक्त परिवारों को किसी भी सरकारी आवास योजना के तहत अविलंब स्वीकृति एवं फंड मुहैया कराने की कृपा करें ताकि बरसात का मौसम शुरु होने से पहले ही ये लोग मकान निर्माण कार्य आरंभ कर सकें.