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सोमवार, 7 जुलाई 2025

बदहाली के कगार पर है सोनपुर का सुप्रसिद्ध लिंगोदभूत उमा महेश्वर मंदिर, जीर्ण शीर्ण हो चुके मंदिर पर उग आये हैं पेड़-पौधे, कोई सुध लेने वाला नहीं

 

पटना (बिहार): एक ओर जहां श्रावणी मेला को लेकर शिव मंदिरों को सजाया व संवारा जा रहा है, वहीं सारण जिला के हद में बाबा हरिहरनाथ की नगरी हरिहरक्षेत्र सोनपुर का सुप्रसिद्ध लिंगोदभूत उमा महेश्वर मंदिर गुमनामी का दंश झेल रहा है। मंदिर जीर्ण-शीर्ण और ध्वस्त होने के कगार पर है। पेड़ -पौधे और उगे हुए झार - झंखार ने मंदिर की रौनक पुरी तरह से छीन ली है।

ज्ञात हो कि सोनपुर गांव के दक्षिणी किनारे हरिहरनाथ- पहलेजा निचली मुख्य कांवरिया पथ से सटे इस मंदिर के गुंबद वाले भाग के मुख्य चार दिशाओं में भगवान श्रीकृष्ण, विघ्नहर्ता श्रीगणेश, महावीर हनुमान एवं एक नाथ पंथी योगी की तस्वीर उत्कीर्ण है। ऐसी मान्यता है कि चार दिशाओं में स्थापित इन चार दिक्पालों ने सदियों से हरिहरक्षेत्र वासियों की सुरक्षा की कमान संभाल रखी है।

यहां की निचली सड़क से सटे उत्तर सड़क और मंदिर के भू-भाग़ पर अतिक्रमण से इस सड़क से गुजरनेवाले यात्रियों के लिए इस मंदिर में स्थापित उमा महेश्वर का दर्शन दुर्लभ हो गया है। इस मंदिर परिसर में कई लघु मंदिर है। कुछ क्षतिग्रस्त हो चुके हैं तो कुछ समाधि मंदिरों में स्थापित शिव लिंगों की दशकों पहले चोरी की जा चुकी है। मुख्य मंदिर में स्थापित शिव लिंगोदभुत मूर्ति को भी डेढ़ दशक पूर्व चोरी करने का प्रयास किया गया था। इसमें सफल नहीं होने पर मूर्ति को क्षतिग्रस्त करने का प्रयास किया गया था। इसे बाला नाथ समूह के मंदिरों में एक प्रसिद्ध मंदिर माना जाता है। जहां सिद्ध संतों की समाधियां मौजूद हैं, जिन पर शिव लिंग स्थापित है।

इस पुराने मंदिर के रख-रखाव के प्रति न ग्रामवासी संवेदनशील है न बिहार राज्य धार्मिक न्यास पर्षद और न बिहार पर्यटन। इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि यह सिद्ध योगियों और शिव शक्ति के आराधकों का पवित्र स्थल है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि शिव लिंग में ही देवी की मुखाकृति उद्भूत (लिंगोदभूत) है। मंदिर के गर्भ गृह में दीवारों पर लगभग मिट चुकी कलाकृतियां मद्धिम ही सही इसके अतीत की खूबसूरती का अहसास करा रही है। देखरेख के अभाव में मंदिर के गर्भगृह के भीतरी दीवारों पर उत्कीर्ण नाग कन्याओं, मोर आदि की कलाकृतियां अब धुंधली पड़ गई है।जरूरत है ऐसे आस्था के धरोहरो को संवारने व् बचाकर रखने की। अब देखना है कि यहां के ग्रामीण या बिहार राज्य धार्मिक न्यास पर्षद और न बिहार पर्यटन इस दिशा में सक्रिय होते हैं या इसके अस्तित्व को लुप्त होने की बाट जोहेंगे (साभार)।








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