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शनिवार, 27 सितंबर 2025

बहरागोड़ा:- बहरागोड़ा में दुर्गा पूजा के अनोखे पंडाल, कहीं नजर तो कहीं दिखा समय का दिशा.........

बहरागोड़ा संवाददाता:-BAPI


बहरागोड़ा News: बहरागोड़ा प्रखंड क्षेत्र के शासन गांव में दुर्गा पूजा केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि कला और संस्कृति का अनोखा संगम है. हर साल यहां के बड़े पूजा पंडाल किसी मशहूर जगह या मंदिर की तर्ज पर बनाए जाते हैं. बहरागोड़ा के साकरा पंचायत के शासन गांव में ताजमहल का के ऐतिहासिक की तर्ज पर बनाया जा रहा है. विशाल ढांचा, गुम्बदनुमा प्रवेश द्वार और गांव खेत खलिहान की जैसी सजावट इसे खास बनाती है. यहां आने वाले श्रद्धालुओं को ऐसा लगेगा कि वह ताजमहल मै घूम रहे है. इस बार की यही इसकी सबसे बड़ी खासियत है. यहां आप अपने परिवार के साथ हर दिन दुर्गा पूजा का लुफ्त उठा सकते हैं. शासन गांव में में दुर्गा पूजा का आयोजित किया जा रहा है. हर साल अनोखे और अलग अंदाज में पंडाल को बनाया जाता है. शासन गांव में पंडाल भी हर साल एक अलग रूप लेता है और इस बार की बात करें तो दक्षिणेश्वर काली मंदिर, वेस्ट बंगाल की तर्ज पर इसे सजाया गया है. ऊँचे शिखर, पारंपरिक बंगाली रंग-सज्जा और धुनुची नृत्य इसकी खासियत है. यहां भव्य भोग प्रसाद और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है. श्रद्धालु इसे देखने दूर-दूर से आते हैं. सार्वजनिक दुर्गा पूजा कॉमेडी शासन,पारुलिए,जरुलिया, जमगड़िया जम्हारिया आदि गांव के समिति के कहना है कि  3 साल से इसी तरह आयोजन करते आ रहे है जहां लाखों की संख्या में हर साल श्रद्धालु आकर इस पूजा में शामिल होकर लुफ्त उठाते हैं. पहले दिन षष्ठी को दुर्गा पूजा पंडालों में मां दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना होती है। पूजा समितियाँ ढाक, शंख और मंत्रोच्चार से वातावरण को भक्तिमय बनाती हैं. श्रद्धालु सुबह-शाम दर्शन करने आते हैं। लाल-सफेद साड़ियों में महिलाएँ और पारंपरिक वेशभूषा में पुरुष पूजा में शामिल होकर लुफ्त उठाना शुरू कर देते हैं. दूसरे दिन सप्तमी पर नवपत्रिका स्नान होता है। नौ तरह के पौधों को देवी का स्वरूप मानकर स्नान कराकर पूजा में स्थापित किया जाता है। सुबह विशेष पूजा होती है। शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रमों का दौर शुरू होता है। पंडालों में भीड़ और खाने-पीने के स्टॉल पर चहल-पहल पूरे दिन दिखाई देती है। इसके साथ ही यहां हर रोज सुबह और शाम को प्रसाद का वितरण होता है। तीसरे दिन अष्टमी दुर्गा पूजा का सबसे खास दिन होता है। सुबह हज़ारों लोग महाअंजलि में शामिल होते हैं। छोटी बच्चियों का कुमारी पूजन होता है। पंडालों में धुनुची नृत्य, ढाक और शंखनाद से वातावरण रंगीन होता है। इस दिन खास भोग लूची, चने की दाल और मिठाई सबको प्रसाद के रूप में दी जाती है। नवमी पर मां दुर्गा को महिषासुर मर्दिनी रूप में पूजा जाता है. इस दिन बलिदान या प्रतीकात्मक फल/कद्दू बलि की परंपरा भी होती है. श्रद्धालु बड़ी संख्या में भोग ग्रहण करते हैं. पंडालों में गीत, नृत्य और नाटक जैसे प्रोग्राम का आयोजन होता है, जिसका श्रद्धालु जमकर लुफ्त उठाते हैं. पांचवां दिन विजयादशमी को प्रतिमा विसर्जन होता है. महिलाएँ सिंदूर खेलकर मां को विदा करती हैं और इस दिन सिंदूर खेला कहते हैं.

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