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शनिवार, 6 सितंबर 2025

नारायण आईटीआई चांडिल में शिक्षक दिवस पर डॉ. राधाकृष्णन को दी श्रद्धांजलि

नारायणआईटीआई लुपुंगडीह चांडिल में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर  सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी की जयंती मनाई गई एवं उनके तस्वीर पर श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया  इस अवसर पूरे देश में शिक्षक दिवस मनाई जाती है

चांडिल:- नारायण आईटीआई लुपुंगडीह चांडिल में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर  सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी की जयंती मनाई गई एवं उनके तस्वीर पर श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया  इस अवसर पूरे देश में शिक्षक दिवस मनाई जाता है 

अवसर पर संस्थान के संस्थापक एवं *भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ जटाशंकर पांडे* जी ने कहा कि भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति (1952 — 1962) और द्वितीय राष्ट्रपति रहे। वे भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद, महान दार्शनिक और एक आस्थावान हिन्दू विचारक थे। 

उनके इन्हीं गुणों के कारण सन् 1954 में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया था। उनका जन्मदिन (5 सितम्बर) भारत में प्रति वर्ष शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति द्वितीय राष्ट्रपति रहे सर्वपल्ली राधाकृष्णन की यह प्रतिभा थी कि स्वतन्त्रता के बाद इन्हें संविधान निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया गया। वे 1947 से 1949 तक इसके सदस्य रहे। 

इसी समय वे कई विश्वविद्यालयों के चेयरमैन भी नियुक्त किये गये। अखिल भारतीय कांग्रेसजन यह चाहते थे कि सर्वपल्ली राधाकृष्णन गैर राजनीतिक व्यक्ति होते हुए भी संविधान सभा के सदस्य बनाये जायें। जवाहरलाल नेहरू चाहते थे कि राधाकृष्णन के संभाषण एवं वक्तृत्व प्रतिभा का उपयोग 14 - 15 अगस्त 1947 की रात्रि को उस समय किया जाये जब संविधान सभा का ऐतिहासिक सत्र आयोजित हो। 

राधाकृष्णन को यह निर्देश दिया गया कि वे अपना सम्बोधन रात्रि के ठीक 12 बजे समाप्त करें। क्योंकि उसके पश्चात ही नेहरू जी के नेतृत्व में संवैधानिक संसद द्वारा शपथ ली जानी थी।1952 में सोवियत संघ से आने के बाद डॉक्टर राधाकृष्णन उपराष्ट्रपति निर्वाचित किये गये। संविधान के अंतर्गत उपराष्ट्रपति का नया पद सृजित किया गया था। 

नेहरू जी ने इस पद हेतु राधाकृष्णन का चयन करके पुनः लोगों को चौंका दिया। उन्हें आश्चर्य था कि इस पद के लिए कांग्रेस पार्टी के किसी राजनीतिज्ञ का चुनाव क्यों नहीं किया गया। उपराष्ट्रपति के रूप में राधाकृष्णन ने राज्यसभा में अध्यक्ष का पदभार भी सम्भाला। सन 1952 में वे भारत के उपराष्ट्रपति बनाये गये। बाद में पण्डित नेहरू का यह चयन भी सार्थक सिद्ध हुआ, क्योंकि उपराष्ट्रपति के रूप में एक गैर राजनीतिज्ञ व्यक्ति ने सभी राजनीतिज्ञों को प्रभावित किया। संसद के सभी सदस्यों ने उन्हें उनके कार्य व्यवहार के लिये काफ़ी सराहा। इनकी सदाशयता, दृढ़ता और विनोदी स्वभाव को लोग आज भी याद करते हैं।

इस अवसर पर मुख्य रूप से मौजूद रहे एडवोकेट निखिल कुमार, प्रोफेसर सुधिष्ट कुमार शांति राम महतो,प्रकाश महतो, देवाशीष मंडल,अजय मंडल,पवन महतो, कृष्णा पद महतो,गौरव महतो,संजीत महतो, एवं संस्थान के सभी ट्रेड के छात्र छात्राओं उपस्थित रहे।