नेताजी सुभाष विश्वविद्यालय के नेताजी सुभाष फार्मेसी संस्थान द्वारा 18 सितंबर को 5वें राष्ट्रीय फार्माकोविजिलेंस सप्ताह - 2025 का आयोजन विश्वविद्यालय परिसर में किया गया। विद्यार्थियों में शैक्षणिक जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से कार्यक्रम का संयोजन फार्मेसी संस्थान के प्राचार्य प्रो. डॉ. दिलीप कुमार ब्रह्मा के कुशल नेतृत्व में किया गया। कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि श्री धर्मेंद्र सिंह, कार्यकारी सदस्य, फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई), विशिष्ट अतिथि श्री आमोद कुमार, मुख्य फार्मासिस्ट, सदर अस्पताल, जमशेदपुर, अतिथि श्री ओ.पी. ठाकुर, फार्मासिस्ट, सदर अस्पताल, जमशेदपुर, डॉ. पी.के. पाणि- कुलपति, नेताजी सुभाष विश्वविद्यालय, श्री मोजिब अशरफ, परीक्षा नियंत्रक, नेताजी सुभाष विश्वविद्यालय, डॉ. श्रद्धा वर्मा, आईक्यूएसी निदेशक, नेताजी सुभाष विश्वविद्यालय उपस्थित रहे।
कार्यक्रम की शुरुआत बी. फार्मेसी के 5वें सेमेस्टर की छात्रा सुश्री विष्णु प्रिया ने एक मनमोहक नृत्य प्रस्तुति के साथ किया। इसके पश्चात कार्यक्रम में उपस्थित सभी गणमान्य व्यक्तियों का पुष्पगुच्छ देकर गरिमामय स्वागत किया गया।
अपने उद्घाटन वक्तव्य में कार्यक्रम की उपयोगिता और इसके उद्देश्यों को रेखांकित करते हुए डॉ. ब्रह्मा ने कहा *स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों, रोगियों, नियामकों और जनता के बीच प्रतिकूल दवा प्रतिक्रियाओं (एडीआर) की रिपोर्टिंग के महत्व के बारे में विद्यार्थियों में जागकता बढ़ाने के दृष्टिकोण से इस सेमिनार कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। हम फार्माकोविजिलेंस की संस्कृति को मज़बूत करके रोगी सुरक्षा को बढ़ावा दे सकते हैं। हमें एडीआर रिपोर्टिंग को स्वास्थ्य सेवा अभ्यास का एक नियमित हिस्सा बनाना चाहिए। इसमें स्वास्थ्य सेवा कर्मियों (डॉक्टर, फार्मासिस्ट, नर्स, आदि) को एडीआर की सही पहचान, दस्तावेज़ीकरण और रिपोर्टिंग के लिए प्रशिक्षित और शिक्षित करने जैसी गतिविधियां शामिल हैं जिससे वह एडीआर रिपोर्टिंग फ़ॉर्म को सही तरीके से भरने में सक्षम हो सके।
कार्यक्रम में आए सभी वक्ता अतिथियों ने औषधि खोज, प्रतिकूल औषधि प्रतिक्रिया, फार्माकोविजिलेंस का इतिहास, पीपीआर-2015 (फार्मेसी प्रैक्टिस रेगुलेशन-2015), औषधि निर्धारित करने की विधियाँ, प्रतिकूल औषधि प्रतिक्रिया की रिपोर्ट आदि के बारे में अपना बहुमूल्य ज्ञान साझा किया।
भारत में फार्माकोविजिलेंस का लंबा इतिहास है पर फिर भी इस क्षेत्र में और अधिक जागरूकता की आवश्यकता है- धर्मेंद्र सिंह
मुख्य वक्ता धर्मेंद्र सिंह ने भारत में फार्माकोविजिलेंस के इतिहास, भारत में फार्माकोविजिलेंस की आवश्यकता, विभिन्न दवाओं की विभिन्न प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं, भारतीय फार्मेसी परिषद (पीसीआई) द्वारा संचालित विभिन्न जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से दवा सुरक्षा और चिकित्सीय प्रबंधन के बारे में जागरूकता पैदा करने में उसकी भूमिका पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम में बतौर विशिष्ट अतिथि शामिल हुए आमोद कुमार और ओ.पी. ठाकुर ने अपने कार्य अनुभव साझा करते हुए दवा लिखने में होने वाली त्रुटियों, दवा वितरण से संबंधित समस्याओं, गलत खुराक के संकेत के कारण दवाओं के अनेक दुष्प्रभावों और प्रतिकूल प्रभावों के बारे में बताया।
वहीं कार्यक्रम के दूसरे सत्र में फार्मेसी विभाग की विभागाध्यक्ष और वक्ता श्री मृण्मय घोष ने *विशिष्ट दवा बंधन स्थलों, दवाओं की क्रियाविधि, फार्मासिस्ट द्वारा दिए गए संकेतों के अनुसार विशिष्ट दवाएं लेकर दवाओं के प्रतिकूल प्रभावों को कैसे कम किया जाए, आदि के बारे में बताया।
कार्यक्रम को विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. पी.के. पाणि ने भी संबोधित किया और अध्ययन की घटनाओं, कम अध्ययन वाली आबादी में एडीआर के प्रकार, भारत में हर्बल/पारंपरिक दवाओं से संबंधित एडीआर के बारे में जानकारी साझा की। परीक्षा नियंत्रक प्रो. मोजिब अशरफ ने प्रतिकूल दवा प्रतिक्रियाओं के हानिकारक प्रभावों के बारे में अपने अनुभव साझा किए। आईक्यूएसी निदेशक डॉ. श्रद्धा वर्मा ने संभावित एडीआर की पहचान करने के लिए दवा के ऑर्डर और नैदानिक लक्षणों की समीक्षा के बारे में जागरूक किया। उन्होंने बताया कि दवा-दवा परस्पर क्रिया, दवा-खाद्य परस्पर क्रिया, ज्ञात उच्च जोखिम वाली दवाओं की निगरानी कैसे की जाती है।
कार्यक्रम का समापन प्राचार्य डॉ. दिलीप कुमार ब्रह्मा द्वारा सभी अतिथियों, वक्ताओं, विश्वविद्यालय के गणमान्य व्यक्तियों और विभाग के छात्रों के लिए धन्यवाद ज्ञापन के साथ संपन्न हुआ। कार्यक्रम में फार्मेसी विभाग के 200 विद्यार्थियों के साथ विश्वविद्यालय के अन्य विभागों के विद्यार्थियों ने भी बड़ी संख्या में अपनी सहभागिता सुनिश्चित की।
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