भारत में सोशल मीडिया और मोबाइल फोन का बढ़ता इस्तेमाल अब सिर्फ टाइम पास नहीं, बल्कि स्वास्थ्य चुनौती बनता जा रहा है। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि लगातार स्क्रीन और नकारात्मक कंटेंट के संपर्क में रहने से मानसिक और शारीरिक दोनों स्वास्थ्य प्रभावित हो सकते हैं। भारत में 82 करोड़ से अधिक लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। इनमें लगभग 47 करोड़ एक्टिव सोशल मीडिया यूजर हैं। औसत भारतीय यूजर रोजाना 2.7 घंटे सोशल मीडिया पर बिताता है। सबसे बड़ा वर्ग 18-24 वर्ष आयु का है, जो डूमस्क्रॉलिंग की आदत का सबसे ज्यादा शिकार। डूमस्क्रॉलिंग = लगातार सोशल मीडिया और न्यूज प्लेटफॉर्म्स पर नकारात्मक खबरें पढ़ते या देखते रहना। विशेषज्ञों का कहना है कि डूमस्क्रॉलिंग केवल एक आदत नहीं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य संकट का कारण बन रही है।
डूमस्क्रॉलिंग का खतरा: लगातार ग्राफिक इमेजेज, गुस्सा भड़काने वाली खबरें और निगेटिव न्यूज मस्तिष्क को प्रभावित करती हैं। मस्तिष्क का ऐमिगडाला हिस्सा अत्यधिक सक्रिय हो जाता है, जिससे व्यक्ति हाइपर-अलर्ट मोड में चला जाता है और लगातार खतरा महसूस करता है। 36% भारतीय किशोर रोजमर्रा की जिंदगी में सोशल मीडिया कंटेंट से तनाव और चिंता का सामना करते हैं। न्यूरल सर्किट्री रीवायर हो जाती है, नकारात्मक जानकारी पर ध्यान तेज, सकारात्मक चीजों पर ध्यान कम। लगातार निगेटिव कंटेंट देखने से चिंता और अवसाद का खतरा बढ़ता है। तनाव के कारण नींद का पैटर्न बिगड़ता, और व्यक्ति रिश्तों और समाज से दूर होने लगता है। निर्णय लेने की क्षमता और मस्तिष्क की कार्यक्षमता घट जाती है।
डूमस्क्रॉलिंग से बचने के उपाय: स्क्रीन टाइम सीमित करेंः सोशल मीडिया का समय घटायें।
सोने से पहले डिजिटल डिटॉक्सः नकारात्मक न्यूज या सोशल मीडिया से दूरी बनायें।
सकारात्मक गतिविधियों पर ध्यान देंः पढ़ाई, कला, मेडिटेशन।
नियमित व्यायाम और नींद सुधारेंः शरीर और मस्तिष्क दोनों को स्वस्थ रखें।
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