लगभग 100 एकड़ जमीन पर फैली अफीम की खेती को रोकना पुलिस के लिए चुनौती थी, लेकिन अभियान के तहत 85 एकड़ से अधिक जमीन को मुक्त कराया गया. ग्रामीणों को समझाने- बुझाने और जागरूक करने के बाद उन्होंने अफीम की खेती न करने का प्रण लिया और इस साल पारंपरिक फसलों की ओर लौट आए. स्थानीय किसानों ने कहा कि भटकाव के कारण उन्होंने अफीम की खेती की थी लेकिन अब वे पूरी तरह पारंपरिक खेती को अपनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं. उन्होंने सरकार से अपील की है कि उनकी उपज के लिए उचित बाजार मुहैया कराया जाए ताकि धान और अन्य फसलों का सही दाम मिल सके. खरसावां थाना प्रभारी गौरव कुमार ने बताया कि यह उपलब्धि पुलिस अधीक्षक और सरकार की प्रतिबद्धता का परिणाम है. उन्होंने ग्रामीणों, स्थानीय प्रतिनिधियों और जनप्रतिनिधियों को भी इसका श्रेय दिया. उन्होंने कहा कि दोबारा अफीम की खेती का रुख न करें, यह न केवल कानून के खिलाफ है बल्कि युवाओं के भविष्य पर भी प्रतिकूल असर डालता है.पुलिस अधीक्षक ने किसानों से पारंपरिक खेती जारी रखने और प्रशासन को सहयोग करने की अपील की है. साथ ही उन्होंने चेतावनी दी कि अगर दोबारा अवैध खेती की गई तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी. हालांकि किसानों के रुख को देखते हुए लगता है कि बदलाव अब स्थायी है. सरायकेला नगर पंचायत के पूर्व उपाध्यक्ष और समाजसेवी मनोज कुमार चौधरी ने कहा कि यह केवल खेती का बदलाव नहीं है बल्कि मानसिकता का भी परिवर्तन है. इससे न केवल किसानों के जीवन में सुधार आएगा बल्कि स्थानीय युवाओं के लिए भी नए अवसर पैदा होंगे. कभी नक्सलवाद और अवैध गतिविधियों के लिए बदनाम रहा यह इलाका अब विकास और सकारात्मकता की मिसाल बनता जा रहा है. रीडिंग पंचायत की यह कहानी बताती है कि जागरूकता, सहयोग और दृढ़ संकल्प से समाज में बड़ा बदलाव संभव है.
सोमवार, 22 सितंबर 2025
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सरायकेला: अफीम छोड़ लौटे किसान, प्रशासनिक जागरूकता से धान की खेती की ओर रुख
सरायकेला: जिले के खरसावां प्रखंड के रीडिंग पंचायत में सरकार और पुलिस- प्रशासन की जागरूकता का असर साफ नजर आ रहा है. जहां पिछले साल तक अवैध अफीम की खेती होती थी, आज वही खेत धान की लहलहाती फसलों से भर गए हैं. यह बदलाव क्षेत्र के किसानों और प्रशासन दोनों की जीत है. पिछले साल झारखंड सरकार के आदेश पर पुलिस और प्रशासन ने अफीम की खेती के खिलाफ विशेष अभियान चलाया था.
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