सरायकेला: मॉडर्न छऊ के जनक कुंवर विजय प्रताप सिंह की 130 वी जयंती पर नगर पंचायत के पूर्व उपाध्यक्ष सह सरायकेला छऊ आर्टिस्ट एसोसिएशन के संरक्षक मनोज कुमार चौधरी ने कुंवर साहब की तस्वीर पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए नमन किया उक्त अवसर पर उन्होंने कहा कि कला क्षेत्र में गुरूजनों एवं कला का संरक्षण और संवर्धन करने वाले व्यक्तित्वों का पूजन एवं वंदन करना साथ में उनके अवदान की याद करना उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है यूं तो सरायकेला छऊ नृत्य को पृष्ठ पोशोकता करने में विभिन्न कालखंडों में सरायकेला राज परिवार का बहुत बड़ा अवदान है पर छऊ कला को मॉडर्नाइज कर विश्व पटल पर नई पहचान दिलाने में कुंवर साहब का महत्वपूर्ण योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता आज से करीब सौ साल पहले सरायकेला राज परिवार के कुंअर विजय प्रताप सिंह देव जी की उत्कृष्ट कला अवधारणा के चलते सरायकेला छऊ कला को शास्त्रीयता से ओतप्रोत वाली शैली में तब्दील किया जा सका निसंदेह उस समय के कला क्षेत्र के मृधन्न उस्तादों एवं विज्ञ जनों की सहयोग रहा पर कुंअर साहब की अवदान इसीलिए सर्वश्रेष्ठ रहा क्योंकि उन्होंने छऊकला को कायाकल्प करने की मुख्य भूमिका अदा की थी
कुंअर साहब ने छऊ कला को विश्व के उत्कृष्ट कला बनाने के लिए छऊ को एक नई परिभाषा दी हम कुंअर साहब के दूरदर्शिता के बारे में इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि 1938 में इस परिमार्जित छऊ कला की लोकार्पण करने एवं छऊ शैली को वैश्विक मान्यता दिलाने के लिए सबसे पहले विश्व के सभ्यता की अग्रणी क्षेत्र एवं सांस्कृतिक जगत के जानकारों की हृदय स्थली यूरोप के रंगमंच पर परिमार्जित छऊ का लोकार्पण किया और विश्व के विज्ञजनों द्वारा सरायकेला छऊ नृत्य को भूरी-भूरी प्रशंसा मिली और विश्व कई देशों के समाचार पत्र और पत्रिकाओं ने प्रमुखता से प्रकाशित किया उनके भगीरथी प्रयासों से सरायकेला छऊ शैली को अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हुई कुंअर साहब का यह प्रयोग कामयाब रहा निःसंदेह कुंअर विजय प्रताप सिंह देव जी सरायकेला छऊ कला की केनवस पर एक बलिष्ठ हस्ताक्षर हैं और बने रहेंगे हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारी पहचान छऊ नृत्य को वैश्विक पटल पर पहचान दिलाने वाले कुंवर साहब का सानिध्य मिला पर दुःख भी होता है की उनकी स्मृति के लिए हम अभी तक कुछ भी कर नहीं पाये हैं निसंदेह हमें सरायकेला छऊ के रूप में एक महान विरासत मिली है जो आज हमारी पहचान बन चुकी है एकजुटता के साथ छऊ कला का संरक्षण और संवर्धन करना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।