सरायकेला-खरसावां जिले में दीपावली की रौशनी अब नए रूप में देखने को मिल रही है। मिट्टी के दीयों के साथ-साथ अब गोबर से बने दीयों का चलन भी बढ़ रहा है। और इस बदलाव के पीछे हैं
दीपावली पर अब देसी दीयों की रौशनी से घर आंगन रोशन होंगे. लेकिन इस बार ये दीये मिट्टी से नहीं, गोबर से बने हैं। सरायकेला खरसावां के आदित्यपुर में सीमा पांडेय और उनकी टीम बना रही हैं गोबर से दीये और इन दीयों की मांग सिर्फ झारखंड ही नहीं, बिहार तक जा पहुँची है।
सासाराम, गया, औरंगाबाद से हमें हज़ार से ज़्यादा दीयों का ऑर्डर मिला. हमने भेज भी दिया। साथ ही
इन दीयों की कीमत पाँच रुपये से शुरू होकर 130 रुपये तक जाती है। और खास बात ये है कि इनके ज़रिए 50 से ज़्यादा महिलाओं को रोज़गार भी मिल रहा है।सीमा पांडेय न सिर्फ गोबर से दीये बनवा रही हैं, बल्कि गायों के संरक्षण की दिशा में भी अहम काम कर रही हैं। अब दूध न देने वाली गायों को लोग घर से नहीं निकालते, क्योंकि सीमा जी उनका गोबर भी खरीद लेती हैं।
सीमा पांडेय का ये प्रयास न केवल महिलाओं को रोजगार दे रहा है, बल्कि पर्यावरण के अनुकूल जीवनशैली को भी बढ़ावा दे रहा है। गोबर से बनी राखियों ने पहले ही रक्षाबंधन को नया आयाम दिया और अब दीये बनाकर महिलाएं रोशन कर रही हैं हजारों घरों को।
दीपावली की इस रौशनी में स्वदेशी का रंग और महिला सशक्तिकरण की चमक साफ नज़र आ रही है। सरायकेला-खरसावां की ये पहल पूरे देश के लिए एक मिसाल है।तो अगली बार दीपावली पर अगर आप दीया खरीदें, तो याद रखिएगा एक दीया किसी महिला के सपने को रौशनी दे सकता है।












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