हजारीबाग : सिकरी की शांत शाम कुछ दिनों से अलग दिख रही थी। टाउनशिप की गलियों में बच्चों की हंसी और मजदूरों की भागदौड़ के बीच एक बदलाव की हल्की आहट सुनाई दे रही थी। वजह थी NTPC के निदेशक (ईंधन) शिवम श्रीवास्तव का तीन दिवसीय दौरा। लोगों को उम्मीद थी कि उनकी मौजूदगी से न सिर्फ परियोजना की रफ्तार बढ़ेगी, बल्कि यहां रहने वाले कर्मचारियों और उनके परिवारों की रोजमर्रा की जरूरतें भी सुनी और समझी जाएंगी।
पहला दिन : टाउनशिप की धड़कन को करीब से महसूस करना
शनिवार को निदेशक का काफिला सिकरी टाउनशिप पहुंचा। अधूरी सड़कों पर काम कर रहे मजदूरों ने थोड़ा रुककर ऊपर देखा, जैसे उन्हें भरोसा हो कि अब उनकी मेहनत को सही दिशा मिलेगी। निदेशक ने सिर्फ भवनों के निर्माण नहीं देखे, बल्कि उन परिवारों की बातें भी सुनीं जिनकी जिंदगी इन कमरों और गलियारों से जुड़ी है। अधिकारी निर्माण की फाइलें दिखाते रहे, लेकिन इस पूरे निरीक्षण में सबसे अलग वह पल था जब उन्होंने एक महिला कर्मचारी से पूछा कि नए क्वार्टर बनने से उसे क्या राहत मिलेगी। महिला ने मुस्कुराकर कहा, “साहब, बच्चों को स्थायी कमरा मिल जाएगा, यही सबसे बड़ी सुविधा है।”
दूसरा दिन : नए कमरों में नई उम्मीदें
लांगतु में CISF की नई बैरक जब खोली गई, तो सबसे खुश उन जवानों के चेहरे थे जो अब बेहतर सुविधाओं में रह पाएंगे। एक जवान ने धीरे से कहा, “अब परिवार से दूर रहने का दर्द थोड़ा कम लगेगा।”
सिकरी टाउनशिप में बैचलर हॉस्टल-3 के उद्घाटन के समय भी युवा कर्मचारियों के चेहरों पर सुकून दिख रहा था। कई हंसी-मजाक में बातचीत कर रहे थे कि अब ऑफिस और रहने की जगह दोनों बेहतर हो गई हैं।
शाम को गजल संध्या ने पूरे इलाके को एक सुकूनभरी फुहार दी। थकान से भरे दिन के बाद सुरों की यह शाम, मजदूर से लेकर वरिष्ठ अधिकारी तक, सबके दिल को छूती रही।
तीसरा दिन : हर आवाज को सुनने का मंच
ओपन फोरम, इस दौरे का सबसे मानवीय पहलू रहा। बड़ी मीटिंग हॉल में कर्मचारी अपनी बातें रखते गए। किसी ने सुरक्षात्मक उपकरणों की चिंता बताई, तो किसी ने खान क्षेत्र में पानी की कमी का जिक्र किया।
निदेशक हर सवाल को गंभीरता से सुनते रहे। जवाब देते समय उनका लहजा आदेश वाला नहीं, बल्कि टीम के एक सदस्य जैसा था। उन्होंने साफ कहा कि हर कर्मचारी की सुरक्षा और सुविधा ही परियोजना की असल ताकत है। एक वरिष्ठ कर्मचारी ने जाते-जाते कहा, “आज लगा कि हमारी बात सिर्फ सुनी नहीं गई, समझी भी गई है।”
तीन दिनों का असर : सिकरी में भरोसे की लौ
इस दौरे ने परियोजना की गति तो बढ़ाई ही, साथ ही यहां रहने और काम करने वाले लोगों के बीच भरोसे की नई परत भी बनाई। नई इमारतें, नए कमरे, बेहतर सुविधाएं और खुला संवाद, यह सब सिर्फ विकास की बातें नहीं थीं। यह उन लोगों की कहानी थी जो दिन-रात कोयला परियोजना की जमीन पर काम करते हैं, और पहली बार उन्होंने महसूस किया कि उनकी आवाज भी विकास का हिस्सा है।







0 Comments:
एक टिप्पणी भेजें