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शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2025

सरायकेला: मिट्टी से बने दिये, कलश एवं मुर्तियां की खरीददारी कर माटी शिल्पों की कला का सम्मान और उन्हें प्रोत्साहित करने की जरूरत - मनोज चौधरी

सरायकेला नगर पंचायत के पूर्व उपाध्यक्ष सह सक्रिय समाजसेवी मनोज चौधरी जो अपने अनोखे अंदाज के लिए जाने जाते हैं आज वे कुम्होरों के पास पहुंचे उन्होंने "वोकल फोर लोकल" के महत्वपूर्ण संदेश के साथ माटी शिल्प कलाकारों से उनके द्वारा बनाए हुए स्वेदेशी उत्पादों की खरीदारी कर वैभवशाली संस्कृति को संरक्षित करने एवं आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को मजबूत किया


उक्त अवसर पर उन्होंने कहा कि हमारे पुरखों ने धार्मिक अनुष्ठानों, पर्व त्यौहारों एवं 16 संस्कारों (गर्भाधान से लेकर अंत्येष्टि तक) की स्वस्थ परंपरा एक दूसरे को समझने तथा सभी वर्गों को समान अवसर प्रदान करने के विकसित किया था. परंतु आधुनिकता की चकाचौंध ने हमारी संस्कृति को प्रभावित किया है और इसके दुष्प्रभाव ने माटी शिल्पो के पुश्तैनी व्यापार को बुरी तरह प्रभावित किया है. मिट्टी के दीए केवल सजावट का साधन नहीं हैं, बल्कि हमारी संस्कृति, परंपरा और आस्था का प्रतीक हैं. ये पर्यावरण के लिए भी पूरी तरह सुरक्षित हैं, जबकि झालरें बिजली की खपत बढ़ाती हैं और कई बार प्लास्टिक सामग्री से बनी होने के कारण प्रदूषण भी फैलाती हैं.एक छोटा-सा दिया जब जलता है, तो केवल प्रकाश ही नहीं फैलाता, बल्कि यह संदेश देता है कि अंधकार चाहे कितना भी गहरा क्यों न हो, एक छोटी-सी लौ भी उसे मिटा सकती है. यही भारतीय संस्कृति की आत्मा है, जो अब आधुनिकता की चकाचौंध में कहीं खोती जा रही है.

आपका खरीदा हुआ एक दिया,गरीब कुम्हार परिवारों के लिए दिवाली का सबसे बड़ा तोहफा होगा.आप अपने घर के साथ उन परिवारों के घरों में भी रोशनी फैलाएंगे,जिनके वो हकदार हैं. तो आईए इस दिवाली अपने घरों के साथ-साथ उन कुम्हारों के घरों में भी खुशियां लाएं जिनके हाथों ने इस मिट्टी को आकार देकर जान डाली है. इस बार जब दिया जलाएं, तो याद रखें कि ये सिर्फ रोशनी नहीं, किसी मेहनतकश की उम्मीद की किरण भी है.

उन्होंने इस अवसर पर आमजनों से भावनात्मक अपील करतें हुए कि इस दिवाली पर एक संकल्प लें. झालरों की कृत्रिम रोशनी से ज्यादा मिट्टी के दीयों की सादगी को अपनाएं. अपने घर, मंदिर, आंगन और छत पर मिट्टी के दीए जलाएं.






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