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शुक्रवार, 21 नवंबर 2025

दिल्ली: कोकून से करघे तक… IITF में झारखंड की महिलाएं बदल रही तसर की कहानी

दिल्ली: भारत अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला (IITF) 2025 में जब लोग झारखंड पवेलियन के भीतर कदम रखते हैं, तो उन्हें सबसे पहले करघे की हल्की थरथराहट सुनाई देती है। कोने में बैठी तसर कारीगर तम्सुम अपने हाथों से धागों को संभालते हुए जैसे हर सूत में अपनी जीवन कहानी बुन देती है। पास ही उबलते पानी की भाप के बीच एक और महिला कोकून से रेशम निकालती है, और उस चमक में उनके घरों की रोशनी साफ दिखती है। यही है झारखंड पवेलियन की असली पहचान, तसर की असली चमक, जो इन महिलाओं के हाथों से निकलकर पूरे देश तक पहुंचती है।



गांवों से दिल्ली तक… एक लंबा सफर

झारखंड को आज देश की तसर राजधानी कहा जाता है। 2001 में जहां 90 मीट्रिक टन कच्चा रेशम बनता था, वहीं आज यह आंकड़ा 1363 मीट्रिक टन तक पहुंच चुका है। इस सफर के केंद्र में हैं वे महिलाएं, जिनके हाथों में अभाव के बीच भी सीखने और आगे बढ़ने की जिद रही। राज्य में आज 100 कोकून संरक्षण केंद्र और 40 परियोजना केंद्र काम कर रहे हैं। इन केंद्रों में सुबह-सुबह काम पर पहुंचने वाली महिलाएं सिर्फ धागा नहीं काततीं, बल्कि उस धागे में अपनी रोजमर्रा की लड़ाइयों, अपने परिवार की जरूरतों और अपने बच्चों की पढ़ाई का सपना भी पिरोती हैं।

“इस धागे में हमारी मेहनत भी है और हमारी उम्मीद भी”

पवेलियन में मौजूद एक कारीगर कहती है, “पहले हमें नहीं पता था कि तसर का धागा इतनी दूर तक भी जा सकता है। अब लगता है हम भी कुछ बड़ा कर रहे हैं। इस धागे में हमारी मेहनत भी है और हमारी उम्मीद भी।” झारखंड में तसर उत्पादन के लगभग 50 से 60 प्रतिशत कामकाज की कमान महिलाएं संभालती हैं। यार्न उत्पादन तो पूरी तरह उनके हाथों में है। उनके लिए यह काम सिर्फ रोजगार नहीं, बल्कि सम्मान और आत्मनिर्भरता देने वाला सहारा है।

CFC केंद्रों ने बदली तस्वीर

झारक्राफ्ट, JSLPS और रेशम निदेशालय की मदद से राज्य भर में कॉमन फैसिलिटी सेंटर (CFC) चल रहे हैं। यहां 30 से 60 महिलाएं एक साथ बैठकर धागा निकालने, रंगाई, बुनाई और डिजाइन सीखने का काम करती हैं। इन केंद्रों ने न सिर्फ उन्हें हुनर दिया बल्कि घर से बाहर निकलकर टीम में काम करने का आत्मविश्वास भी दिया।

एक महिला बुनकर बताती है, “पहले हम घर से बाहर नहीं जाते थे। आज हम खुद कपड़े बनाते हैं, बेचते हैं और ट्रेनिंग भी देते हैं। बच्चे कहते हैं… मां, आप तो दिल्ली भी जा आईं।”

पवेलियन में तसर के पीछे छिपी दुनिया दिखाई देती है

झारखंड पवेलियन में हो रही लाइव डेमो लोगों का सबसे बड़ा आकर्षण है। पानी में डूबते कोकून, उनसे निकलते महीन धागे, और फिर उन्हीं धागों से करघे पर बनी मुलायम कपड़े की पट्टी, यह पूरी प्रक्रिया दर्शकों को बताती है कि तसर सिर्फ एक उत्पाद नहीं, बल्कि मेहनत, हुनर और परंपरा का मेल है। लोग तम्सुम से पूछते हैं कि यह काम कितना मुश्किल है। वह मुस्कुराकर कहती है, “मुश्किल तो है, पर इसी ने हमें आगे बढ़ाया है। इसी ने हमें पहचान दी है।”

हस्तशिल्प की खुशबू और गांव की मिट्टी साथ आई

पवेलियन में झारक्राफ्ट द्वारा पेश किए गए तसर आधारित वस्त्र और ग्रामीण हस्तशिल्प लोगों को रोक लेते हैं। हर साड़ी, दुपट्टा और स्टोल में कहीं न कहीं झारखंड के जंगलों और गांवों की छाप मिलती है। यह सिर्फ बिक्री का स्थान नहीं, बल्कि हजारों कारीगरों की मेहनत और उनकी आर्थिक आजादी का मंच भी है।

एक छत के नीचे झारखंड की कहानी

IITF 2025 में झारखंड पवेलियन सिर्फ उत्पाद नहीं दिखा रहा। यह बताता है कि कैसे तसर ने महिलाओं के जीवन बदले, कैसे गांवों में नई अर्थव्यवस्था खड़ी हुई, और कैसे एक राज्य ने अपनी परंपरा को आधुनिक बाजार से जोड़कर नया रास्ता बनाया। जब पवेलियन से बाहर निकलते हैं, तो तसर की चमक आपकी आंखों में बस जाती है। और यह महसूस होता है कि इस चमक में सिर्फ रेशम की सुंदरता नहीं, बल्कि उन हाथों का उजाला भी है, जिन्होंने इसे संभव बनाया।

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