सरायकेला। उत्कलीय परंपरा के अनुसार सरायकेला सहित आसपास के क्षेत्र में पोढ़ुआ अष्टमी या प्रथमा अष्टमी श्रद्धा भाव के साथ मनाया गया। इस अवसर पर प्रातः स्नान ध्यान कर घर के देव स्थान पर घर के प्रथम एवं द्वितीय संतान उपस्थित हुए।
जहां उनके माता-पिता की उपस्थिति में माता ने आरती उतार कर और तिलक लगाकर अपने प्रथम एवं द्वितीय संतान की पूजा अर्चना की। साथ ही सरसों के फूल से संवारा गया।
मौके पर नया वस्त्र देवता को अर्पित करते हुए वही वस्त्र उपहार स्वरूप प्रथम एवं द्वितीय संतान को पहनाया गया। इसके बाद अवसर के विशिष्ट व्यंजन के तहत घर में विशेष रूप से पकाए गए बीरी पीठा, बैगन भाजा, बैगन पुड़ा एवं सरसों के साग सहित अन्य पकाए गए सात्विक भोजन प्रथम एवं द्वितीय संतान को सेवन कराया गया। मान्यता रही है कि पोढ़ुआ अष्टमी पर घर के प्रथम एवं द्वितीय संतान के परंपरा अनुसार पूजन एवं सत्कार से घर में समृद्धि का वास होता है। और संतान परंपरा बनी रहने के साथ-साथ संतान को दीर्घायु की प्राप्ति होती है।











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