राँची: आज माननीय उच्च न्यायालय के खंडपीठ माननीय न्यायाधीश श्री सुजीत नारायण प्रसाद व माननीय न्यायाधीश श्री संजय प्रसाद के खंड पिठ में बहस हुई, भैरव सिंह के पक्ष मे वरिय अधिवक्ता श्री अजीत कुमार व अधिवक्ता अभय मिश्रा ।
हमारा पक्ष
1) भैरव सिंह कोई पेशेवर अपराधी नहीं है।
2) भैरव सिंह पर जो अपराध अधिनियम के तहत जो निरूद्ध करने का आदेश पारित है वह संविधान के विरोध में है।
3) भैरव सिंह पर जो भी मुकदमा दर्ज है वह सनातन धर्म के बचाव में धरना प्रदर्शन के लिए है ।
4) भैरव सिंह पर पुर्व में जिला बदर की कार्रवाई की गई थी उसी साक्ष्य के आधार पर दोबारा निरूद्ध करने का आदेश पारित नहीं किया जा सकता है।
5) भैरव सिंह पर जो झारखंड अपराध अधिनियम का मामला बनता ही नहीं है।
6) जो पहला मुकदमा है वह काली मंदिर व हनुमान मंदिर मे प्रतिबंध मांस फेंके जाने का के विरोध का मुद्दा है ।
7) उस मुकदमा में दोषियों को नहीं पकड़ उल्टा तत्कालीन वरिय आरक्षी अधीक्षक को हस्तांतरित कर दिया गया था ।
सरकार के ओर से बहस , हमें प्रत्युत्तर देने समय दिया जाए! इसके अतिरिक्त जबाब शुन्य।
माननीय उच्च न्यायालय की टिप्पणी।
ऐसा लगता है, सरकार ने बिना किसी साक्ष्य के अपराध अधिनियम में भैरव सिंह को निरूद्ध कर दिया है।
महाबीर मंदिर व काली मंदिर में तो जनहित याचिकाओं में मैंने भी अनेकानेक आदेश पारित किया था ।
इस प्रकार के क्षेत्राधिकार के विरुद्ध जाकर आदेश पारित करें से तो प्रथमदृष्टया लग रहा है झारखंड में आपातकाल की परिस्थितियां हैं ?
दोनों पक्ष के बहस के उपरांत।
माननीय न्यायालय का आदेश
वादी ने उनके उपर लागाए झारखंड अपराध अधिनियम के तहत धारा 12 के निरूद्ध करने के आदेश को चुनौती दिया है , वादी ने उक्त आदेश के विरुद्ध सरकार को बंदी आवेदन दिया था, जिसका प्रतिफल भी वादी को नहीं बताया गया है ।
वादी को बोर्ड के समक्ष भी तीन हफ्ते के बाद लाया गया है, बोर्ड के निर्णय को भी वादी को नहीं बताया गया है।
पुर्व में भी वादी पर झारखंड अपराध अधिनियम में 15 दिनों के लिए जिला बदर घोषित किया गया था ,तो पुनः फिर उसी आधार पर निरूद्ध कैसे किया गया है?
प्रथमदृष्टया यह लगता है सरकार का निरूद्ध करने का आदेश अवसाद से प्रेरित है ।
सरकार ज़बाब दाखिल करें ।







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