Advertisement

Advertisement

Advertisement

मंगलवार, 30 दिसंबर 2025

राष्ट्रपति ने ओल चिकी लिपि की शताब्दी समारोह को बना दिया यादगार

जमशेदपुर के करनडीह स्थित दिशोम जाहेरथान प्रांगण में सोमवार को आयोजित 22वें संताली ‘परसी माहा’ एवं ओल चिकी लिपि शताब्दी समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने संथाली भाषा में गीत गाकर उपस्थित लोगों का मन मोह लिया। उन्होंने अपने संबोधन की शुरुआत लगभग तीन मिनट तक “जोहार जोहार आयो…” गीत से की, जिसे सुनकर कार्यक्रम में मौजूद लोग मंत्रमुग्ध हो गए।

संथाली भाषा और ओल चिकी लिपि का महत्व

राष्ट्रपति ने अपने जीवन संघर्ष का जिक्र करते हुए कहा कि समाज के प्रेम और इष्टदेवों के आशीर्वाद ने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया। उन्होंने ओल चिकी लिपि को संथाली समाज की पहचान, आत्मसम्मान और एकता का आधार बताया। राष्ट्रपति ने संविधान में संथाली अनुवाद का महत्व बताते हुए कहा कि जब कानून और अधिकारों की जानकारी मातृभाषा में होगी तो समाज सशक्त बनेगा और निर्दोष लोग न्याय से वंचित नहीं होंगे।

साहित्य और संस्कृति के संरक्षण में योगदान

राष्ट्रपति ने ऑल इंडिया संताली राइटर्स एसोसिएशन के योगदान की सराहना की और भरोसा जताया कि वे ओल चिकी लिपि और संथाली समाज के संरक्षण व विकास के लिए लगातार प्रयास करेंगी। समारोह में साहित्यकारों, शिक्षकों और साधकों को सम्मानित भी किया गया।

यह आयोजन जनजातीय संस्कृति की जीवंतता और गर्व का प्रतीक : राज्यपाल

समारोह में मौजूद प्रदेश के राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार ने कहा कि यह आयोजन केवल सांस्कृतिक उत्सव नहीं, बल्कि जनजातीय संस्कृति की जीवंतता और गर्व का प्रतीक है। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के जीवन संघर्ष को पूरे आदिवासी समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत बताया और जमशेदपुर को सांप्रदायिक सौहार्द और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक शहर बताया। उन्होंने याद दिलाया कि वर्ष 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में संथाली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया था और ओल चिकी लिपि हमारी अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर है। राज्यपाल ने कहा कि राज्यपाल भवन जनजातीय भाषाओं और संस्कृतियों के संरक्षण के लिए हमेशा सक्रिय रहेगा।

जनजातीय भाषाओं और संस्कृति के संरक्षण के लिए निरंतर प्रयासरत है राज्य सरकार : सीएम

सीएम हेमंत सोरेन ने अपने संबोधन में कहा कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु का संथाली भाषा और ओल चिकी लिपि के विकास में योगदान ऐतिहासिक महत्व का है। उन्होंने संविधान के संथाली अनुवाद को समाज के लिए मील का पत्थर बताते हुए कहा कि


गुरु गोमके पंडित रघुनाथ मुर्मू ने संथाली समाज को लिपि देकर जो पहचान दी, उसके लिए पूरा समाज उनका आभारी है। सीएम ने यह भी कहा कि राज्य सरकार जनजातीय भाषाओं और संस्कृति के संरक्षण के लिए निरंतर प्रयासरत है।

इन्हें मिला सम्मान

समारोह के समापन अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने संथाली साहित्य और ओल चिकी लिपि को समृद्ध करने वाले साहित्यकारों, शिक्षकों और साधकों को सम्मानित किया। सम्मानित होने वालों में शोभनाथ बेसरा, पद्मश्री डॉ. दमयंती बेसरा, मुचीराम हेम्ब्रॉम, भीमवार मुर्मू, साखी मुर्मू, रामदास मुर्मू, चुंडा सोरेन सिपाही, छोतराय बास्के, निरंजन हंसदा, बी.बी. सुंदरमन, सौरव, शिव शंकर कंडेयांग, सी.आर. माझी सहित कई अन्य नाम शामिल रहे।

0 Comments:

एक टिप्पणी भेजें

Breaking